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बिहार में जमीन अब निवेश नहीं, लग्ज़री बनती जा रही है

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बिहार में जमीन की कीमतों को लेकर बड़ा बदलाव होने जा रहा है। आने वाले दिनों में जमीन खरीदना आम लोगों के लिए पहले से कहीं ज्यादा मुश्किल हो सकता है। हालात ऐसे बन रहे हैं कि जमीन की कीमत अब सोने से भी तेज़ रफ्तार से बढ़ने वाली है।सरकारी स्तर पर जमीन के न्यूनतम मूल्य दर (एमवीआर) में बड़े संशोधन की तैयारी लगभग पूरी हो चुकी है। इस बदलाव का सीधा असर पटना समेत आसपास के शहरी, अर्ध-शहरी और ग्रामीण इलाकों पर पड़ेगा, जहां जमीन के सरकारी रेट कई गुना तक बढ़ाए जाने की योजना है।सूत्रों की मानें तो पटना के शहरी क्षेत्रों में जमीन के सरकारी दाम लगभग तीन गुना तक बढ़ सकते हैं, जबकि राजधानी से सटे ग्रामीण और अर्ध-शहरी इलाकों में यह बढ़ोतरी चार गुना तक प्रस्तावित है। जिला मूल्यांकन समिति अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंप चुकी है और अब निबंधन विभाग की अंतिम मुहर के बाद नई दरें लागू की जाएंगी।
एक कट्ठा जमीन, करोड़ों का सौदा
नई दरें लागू होते ही राजधानी के पॉश इलाकों में जमीन खरीदना बेहद महंगा हो जाएगा। फ्रेजर रोड जैसे क्षेत्रों में एक कट्ठा जमीन की न्यूनतम कीमत करीब पांच करोड़ रुपये तक पहुंचने की संभावना जताई जा रही है। दानापुर इलाके में यह आंकड़ा करीब दो करोड़ रुपये, कंकड़बाग की मुख्य सड़कों पर तीन करोड़ रुपये, जबकि पटना सिटी के भागवत नगर क्षेत्र में जमीन का दाम दो करोड़ रुपये के आसपास हो सकता है।वहीं बिहटा जैसे इलाकों में कृषि भूमि के रेट में भी इजाफा तय माना जा रहा है, जहां एक कट्ठा जमीन की कीमत 70 से 80 हजार रुपये तक पहुंच सकती है।रजिस्ट्री भी होगी भारी
सरकारी रेट बढ़ने के साथ ही जमीन की रजिस्ट्री पर लगने वाला स्टांप शुल्क भी लोगों की जेब पर बड़ा असर डालेगा। उदाहरण के तौर पर, अगर तीन करोड़ रुपये की जमीन खरीदी जाती है तो करीब 30 लाख रुपये स्टांप शुल्क देना होगा। वहीं पांच करोड़ रुपये की जमीन पर यह राशि 50 लाख रुपये तक पहुंच सकती है।फिलहाल फ्रेजर रोड जैसे इलाकों में सर्किल रेट करीब डेढ़ करोड़ रुपये है, जबकि बाजार में जमीन का सौदा पांच करोड़ रुपये तक हो रहा है। यदि सरकारी दरों को बाजार भाव के आसपास लाया जाता है, तो जमीन की वास्तविक कीमत आठ से दस करोड़ रुपये तक भी जा सकती है।
नतीजा: आम खरीदार होगा बाहर
नई मूल्य दरें लागू होने के बाद जमीन से सरकार के राजस्व में तो बढ़ोतरी होगी, लेकिन आम आदमी के लिए जमीन खरीदना सपना बन सकता है। निवेशकों और बिल्डरों की दिलचस्पी जरूर बढ़ेगी, मगर मध्यम वर्ग पर इसका सीधा आर्थिक दबाव पड़ना तय है।

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